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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 भूगोल

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2776
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 भूगोल - सरल प्रश्नोत्तर

अध्याय - 10

सतत विकास और उसके अवव्यय

(Sustainabele Development & its Components)

प्रश्न- आर्थिक अभिवृद्धि कार्यक्रमों में सतत विकास कैसे शामिल किया जा सकता है?

उत्तर -

सतत आर्थिक अभिवृद्धि

वर्तमान काल में आर्थिक अभिवृद्धि के समक्ष अनेक गंभीर चुनौतियाँ हैं जिन्हें निम्न शीर्षकों के अन्तर्गत समझा जा सकता है-

(1) मात्रा से गुणात्मक की ओर - अभिवृद्धि का मात्रात्मक पक्ष उत्पादन प्रक्रिया के महत्व के बारे में मूल्य-लाभ विश्लेषण की सरल प्रवृत्ति से संतुष्ट था लेकिन प्रकृति में अमूर्तों की मात्रा मापना कठिन है। इसीलिए एक नए प्रकार की लेखा तकनीक विकसित की जा रही है ताकि प्रकृति में वनस्पति व पशु-पक्षियों के मूल्य की मात्रा मापी जा सके। इससे वास्तविक शब्दों में भौतिक तथा मौद्रिक अभाव को मापा जा सकता है। अनेक मामलों में धन के अलावा अन्य प्रोत्साहनों (incentives) का समुदायों ने अधिक स्वागत किया है।

(2) सतत आर्थिक विकास में मानव आत्म विकास के केन्द्र में है - यह व्यक्ति तथा सामाजिक परिवर्तन में सम्बंध जोड़ता है। यह मानवता तथा प्रकृति के बीच सह-जीवन को प्रोत्साहन देता है। प्रभुत्वशाली औद्योगिक प्रणाली मानसिक गुलामी के अनेक प्रकार के स्वरूपों पर जीती है जिससे भौतिक निर्भरता आती है। इस व्यवस्था में स्वास्थ्य के लिए हानिकारक सम्बंधों को सहा जाता है और सृजनशीलता तथा सरलता का दमन होता है।

(3) पितृतंत्रीय समाज और पुरुष सर्वोच्चता से समता ( equity) के सम्पूर्ण (holistic) नमूने तक - गैर- सतत आर्थिक अभिवृद्धि पुरुष प्रभुत्व, नस्लवाद पर विश्वास, प्रकृति की पराधीनता, नारी तथा समाज के अन्य कमजोर वर्गों को दमन पर आधारित है। उत्पादन प्रक्रियाओं में कार्यकुशलता पर अत्यधिक व एकमात्र जोर देने से इन तत्वों की उपेक्षा होती है और थोड़े से हाथों में अधिशेष के संचय को प्रोत्साहन मिलता है। दूसरी ओर विज्ञान का नारीवादी सिद्धान्त उन निहित मान्यताओं को तोड़ता है जिनके परिणामस्वरूप प्रकृति पर प्रभुत्व होता है और उसका लक्ष्य समाज के भीतर और समाज तथा प्रकृति के बीच अधिक कोमल सम्बंधों के विकल्पों को विकसित करना है।

(4) 'कोई विकल्प नहीं' उपागम से रचना की कार्यनीति तक - 'कोई विकल्प नहीं' (There is no alternative - TINA) उपागम औपनिवेशिक औद्योगिक समाजों में विशिष्ट प्रौद्योगिकी का जनन करने का सूचक उपागम था। वैसे तो प्रभुत्व की शक्तियाँ अभी भी अस्तित्व में हैं और बढ़ रहीं हैं फिर भी साथ-साथ वैकल्पिक उपागमों की जागरूकता के रूप में ज्ञान का कुण्ड भी बढ़ रहा है और उसमें विमुक्ति की उच्च संभावनाएँ हैं। सतत आर्थिक अभिवृद्धि ने आर्थिक लक्ष्यों को पुनर्प्राथमिकता दी है जिससे समाजों को 'व्यवसायीकरण के जाल' से बाहर निकाला जाए और अधिक शिष्ट, व्यापक तथा कार्यकुशल पद्धति से आवश्यकता संतुष्टि की जाए।

(5) प्रदूषण कीमत देय सिद्धान्त - सतत आर्थिक अभिवृद्धि कार्यनीतियाँ यह मानती हैं उत्पादकों की उन लोगों तथ श्रमिकों के प्रति सच्ची जिम्मेदारी होती है जिन्हें वे नौकरी देते हैं। जो उत्पादक अच्छी जीवन दशाओं तथा पर्यावरण को नुकसान करते हैं, उन्हें उसकी कीमत देनी होगी और समाज पर होने वाले नुकसान का व्यय देना होगा। यह दो तरीकों से संभव है एक, उत्पादन प्रक्रिया में नुकसान की कीमत तथा उत्पादित माल की कीमत के आन्तरिककरण द्वारा और दो, सार्वजनिक उत्तरदायित्व अथवा बीमा जैसे विनियमित तंत्र द्वारा जोकि पुरानी अथवा प्रदूषण फैलाने वाली प्रौद्योगिकी अथवा खतरनाक प्रणालियों को गरीब क्षेत्रों में प्रयोग करने से रोके।

( 6 ) उपयुक्त प्रौद्योगिकी तथा समुदाय - स्वामित्व वाले कारखाने या फर्म- उपयुक्त प्रौद्योगिकी से हमारा अर्थ उस प्रौद्योगिकी से है जिसके लिए यह आवश्यक नहीं है कि भारी पूँजी और संसाधन - प्रबल औद्योगिक प्रणालियों की जरूरत हो। यह आवश्यकता पर आधारित भी है। सामुदायिक फर्म अथवा समुदाय स्वामित्व वाले फर्म अथवा नगर निगम स्वामित्व वाले उद्यम केवल लाभ के लिए ही कम नहीं करते बल्कि वे स्थानीय विकास मुद्दों जैसे सामुदायिक हितों का प्रतिनिधित्व व संरक्षण करते हैं। इसीलिए इन्हें प्रायः 'गैर-लाभ संगठन' भी कहा जाता है। इन्हें सामुदायिक निगम भी कहा जाता है और वे भारी पूँजी तथा संसाधन प्रबल औद्योगिक प्रणालियों का विकल्प हैं।

स्थानीय कुशलता व संसाधनों का उपयोग करने वाली उपयुक्त प्रौद्योगिकी अथवा उत्पादन की पद्धति के रूप में विकासशील देश नवीन विचारों की सम्पदा प्रस्तुत करते हैं जिनका व्यवहार बुनियादी स्तर पर होता है। इन नवीन विचारों तथा व्यवहारों से वैकल्पिक उत्पादक प्रणालियों का मार्गदर्शन होता है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- प्रादेशिक भूगोल में प्रदेश (Region) की संकल्पना का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- प्रदेशों के प्रकार का विस्तृत वर्णन कीजिये।
  3. प्रश्न- प्राकृतिक प्रदेश को परिभाषित कीजिए।
  4. प्रश्न- प्रदेश को परिभाषित कीजिए एवं उसके दो प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
  5. प्रश्न- प्राकृतिक प्रदेश से क्या आशय है?
  6. प्रश्न- सामान्य एवं विशिष्ट प्रदेश से क्या आशय है?
  7. प्रश्न- क्षेत्रीयकरण को समझाते हुए इसके मुख्य आधारों का वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- क्षेत्रीयकरण के जलवायु सम्बन्धी आधार कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
  9. प्रश्न- क्षेत्रीयकरण के कृषि जलवायु आधार कौन से हैं? इन आधारों पर क्षेत्रीयकरण की किसी एक योजना का भारत के संदर्भ में वर्णन कीजिए।
  10. प्रश्न- भारत के क्षेत्रीयकरण से सम्बन्धित मेकफारलेन एवं डडले स्टाम्प के दृष्टिकोणों पर प्रकाश डालिये।
  11. प्रश्न- क्षेत्रीयकरण के भू-राजनीति आधार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  12. प्रश्न- डॉ० काजी सैयदउद्दीन अहमद का क्षेत्रीयकरण दृष्टिकोण क्या था?
  13. प्रश्न- प्रो० स्पेट के क्षेत्रीयकरण दृष्टिकोण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  14. प्रश्न- भारत के क्षेत्रीयकरण से सम्बन्धित पूर्व दृष्टिकोण पर प्रकाश डालिये।
  15. प्रश्न- प्रादेशिक नियोजन से आप क्या समझते हैं? इसके उद्देश्य भी बताइए।
  16. प्रश्न- प्रादेशिक नियोजन की आवश्यकता क्यों है? तर्क सहित समझाइए।
  17. प्रश्न- प्राचीन भारत में नियोजन पद्धतियों पर लेख लिखिए।
  18. प्रश्न- नियोजन तथा आर्थिक नियोजन से आपका क्या आशय है?
  19. प्रश्न- प्रादेशिक नियोजन में भूगोल की भूमिका पर एक निबन्ध लिखो।
  20. प्रश्न- हिमालय पर्वतीय प्रदेश को कितने मेसो प्रदेशों में बांटा जा सकता है? वर्णन कीजिए।
  21. प्रश्न- भारतीय प्रायद्वीपीय उच्च भूमि प्रदेश का मेसो विभाजन प्रस्तुत कीजिए।
  22. प्रश्न- भारतीय तट व द्वीपसमूह को किस प्रकार मेसो प्रदेशों में विभक्त किया जा सकता है? वर्णन कीजिए।
  23. प्रश्न- "हिमालय की नदियाँ और हिमनद" पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  24. प्रश्न- दक्षिणी भारत की नदियों का वर्णन कीजिए।
  25. प्रश्न- पूर्वी हिमालय प्रदेश का संसाधन प्रदेश के रूप में वर्णन कीजिए।
  26. प्रश्न- भारत में गंगा के मध्यवर्ती मैदान भौगोलिक प्रदेश पर विस्तृत टिप्पणी कीजिए।
  27. प्रश्न- भारत के उत्तरी विशाल मैदानों की उत्पत्ति, महत्व एवं स्थलाकृति पर विस्तृत लेख लिखिए।
  28. प्रश्न- मध्य गंगा के मैदान के भौगोलिक प्रदेश पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  29. प्रश्न- छोटा नागपुर का पठार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  30. प्रश्न- प्रादेशिक दृष्टिकोण के संदर्भ में थार के मरुस्थल की उत्पत्ति, महत्व एवं विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  31. प्रश्न- क्षेत्रीय दृष्टिकोण के महत्व से लद्दाख पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  32. प्रश्न- राजस्थान के मैदान पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  33. प्रश्न- विकास की अवधारणा को समझाइये |
  34. प्रश्न- विकास के प्रमुख कारक कौन-कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
  35. प्रश्न- सतत् विकास का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  36. प्रश्न- सतत् विकास के स्वरूप को समझाइये |
  37. प्रश्न- सतत् विकास के क्षेत्र कौन-कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
  38. प्रश्न- सतत् विकास के महत्वपूर्ण सिद्धान्त एवं विशेषताओं पर विस्तृत लेख लिखिए।
  39. प्रश्न- अल्प विकास की प्रकृति के विभिन्न दृष्टिकोण समझाइए।
  40. प्रश्न- अल्प विकास और अल्पविकसित से आपका क्या आशय है? गुण्डरफ्रैंक ने अल्पविकास के क्या कारण बनाए है?
  41. प्रश्न- विकास के विभिन्न दृष्टिकोणों पर संक्षेप में टिप्पणी कीजिए।
  42. प्रश्न- सतत् विकास से आप क्या समझते हैं?
  43. प्रश्न- सतत् विकास के लक्ष्य कौन-कौन से हैं?
  44. प्रश्न- आधुनिकीकरण सिद्धान्त की आलोचना पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  45. प्रश्न- अविकसितता का विकास से क्या तात्पर्य है?
  46. प्रश्न- विकास के आधुनिकीकरण के विभिन्न दृष्टिकोणों पर प्रकाश डालिये।
  47. प्रश्न- डॉ० गुन्नार मिर्डल के अल्प विकास मॉडल पर विस्तृत लेख लिखिए।
  48. प्रश्न- अल्प विकास मॉडल विकास ध्रुव सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए तथा प्रादेशिक नियोजन में इसकी सार्थकता को समझाइये।
  49. प्रश्न- गुन्नार मिर्डल के प्रतिक्षिप्त प्रभाव सिद्धांत की व्याख्या कीजिए।
  50. प्रश्न- विकास विरोधी परिप्रेक्ष्य क्या है?
  51. प्रश्न- पेरौक्स के ध्रुव सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  52. प्रश्न- गुन्नार मिर्डल के सिद्धान्त की समीक्षा कीजिए।
  53. प्रश्न- क्षेत्रीय विषमता की अवधारणा को समझाइये
  54. प्रश्न- विकास के संकेतकों पर टिप्पणी लिखिए।
  55. प्रश्न- भारत में क्षेत्रीय असंतुलन की प्रकृति का वर्णन कीजिए।
  56. प्रश्न- क्षेत्रीय विषमता निवारण के उपाय क्या हो सकते हैं?
  57. प्रश्न- क्षेत्रीय विषमताओं के कारण बताइये। .
  58. प्रश्न- संतुलित क्षेत्रीय विकास के लिए कुछ सुझाव दीजिये।
  59. प्रश्न- क्षेत्रीय असंतुलन का मापन किस प्रकार किया जा सकता है?
  60. प्रश्न- क्षेत्रीय असमानता के सामाजिक संकेतक कौन से हैं?
  61. प्रश्न- क्षेत्रीय असंतुलन के क्या परिणाम हो सकते हैं?
  62. प्रश्न- आर्थिक अभिवृद्धि कार्यक्रमों में सतत विकास कैसे शामिल किया जा सकता है?
  63. प्रश्न- सतत जीविका से आप क्या समझते हैं? एक राष्ट्र इस लक्ष्य को कैसे प्राप्त कर सकता है? विस्तारपूर्वक समझाइये |
  64. प्रश्न- एक देश की प्रकृति के साथ सामंजस्य से जीने की चाह के मार्ग में कौन-सी समस्याएँ आती हैं?
  65. प्रश्न- सतत विकास के सामाजिक घटकों पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  66. प्रश्न- सतत विकास के आर्थिक घटकों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  67. प्रश्न- सतत् विकास के लिए यथास्थिति दृष्टिकोण के बारे में समझाइये |
  68. प्रश्न- सतत विकास के लिए एकीकृत दृष्टिकोण के बारे में लिखिए।
  69. प्रश्न- विकास और पर्यावरण के बीच क्या संबंध है?
  70. प्रश्न- सतत विकास के लिए सामुदायिक क्षमता निर्माण दृष्टिकोण के आयामों को समझाइये |
  71. प्रश्न- सतत आजीविका के लिए मानव विकास दृष्टिकोण पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
  72. प्रश्न- सतत विकास के लिए हरित लेखा दृष्टिकोण का विश्लेषण कीजिए।
  73. प्रश्न- विकास का अर्थ स्पष्ट रूप से समझाइये |
  74. प्रश्न- स्थानीय नियोजन की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  75. प्रश्न- भारत में नियोजन के विभिन्न स्तर कौन से है? वर्णन कीजिए।
  76. प्रश्न- नियोजन के आधार एवं आयाम कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
  77. प्रश्न- भारत में विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में क्षेत्रीय उद्देश्यों का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  78. प्रश्न- आर्थिक विकास में नियोजन क्यों आवश्यक है?
  79. प्रश्न- भारत में नियोजन अनुभव पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  80. प्रश्न- भारत में क्षेत्रीय नियोजन की विफलताओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  81. प्रश्न- नियोजन की चुनौतियां और आवश्यकताओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  82. प्रश्न- बहुस्तरीय नियोजन क्या है? वर्णन कीजिए।
  83. प्रश्न- पंचायती राज व्यवस्था के ग्रामीण जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव की विवेचना कीजिए।
  84. प्रश्न- ग्रामीण पुनर्निर्माण में ग्राम पंचायतों के योगदान की विवेचना कीजिये।
  85. प्रश्न- संविधान के 72वें संशोधन द्वारा पंचायती राज संस्थाओं में जो परिवर्तन किये गये हैं उनका उल्लेख कीजिये।
  86. प्रश्न- पंचायती राज की समस्याओं का विवेचन कीजिये। पंचायती राज संस्थाओं को सफल बनाने हेतु सुझाव भी दीजिये।
  87. प्रश्न- न्यूनतम आवश्यक उपागम की व्याख्या कीजिये।
  88. प्रश्न- साझा न्यूनतम कार्यक्रम की विस्तारपूर्वक रूपरेखा प्रस्तुत कीजिये।
  89. प्रश्न- भारत में अनुसूचित जनजातियों के विकास हेतु क्या उपाय किये गये हैं?
  90. प्रश्न- भारत में तीव्र नगरीयकरण के प्रतिरूप और समस्याओं की विवेचना कीजिए।
  91. प्रश्न- पंचायती राज व्यवस्था की समस्याओं की विवेचना कीजिये।
  92. प्रश्न- प्राचीन व आधुनिक पंचायतों में क्या समानता और अन्तर है?
  93. प्रश्न- पंचायती राज संस्थाओं को सफल बनाने हेतु सुझाव दीजिये।
  94. प्रश्न- भारत में प्रादेशिक नियोजन के लिए न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के महत्व का वर्णन कीजिए।
  95. प्रश्न- न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के सम्मिलित कार्यक्रमों का वर्णन कीजिए।
  96. प्रश्न- भारत के नगरीय क्षेत्रों के प्रादेशिक नियोजन से आप क्या समझते हैं?

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